भारत का #स्वर्णिम अतीत..

#तक्षशिला - दुनियाँ का प्रथम विश्वविद्यालय
आज भले ही भारत का एक भी विश्विद्यालय दुनियाँ के 100 विश्विद्यालयों में भी जगह नहीं बना पाता लेकिन एक समय ऐसा भी था जब #दुनियाँ की सबसे पहली यूनिवर्सिटी भारत में थी ।

जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसकी स्थापना श्री राम के भाई #भरत के पुत्र तक्ष ने की थी । यह विश्विद्यालय आज से 2800 वर्ष पूर्व निर्मित किया गया था । दुनियाँ भर के 10,500 से अधिक छात्र यहाँ अध्ययन करते थे ।

विश्विद्यालय में आज की तरह शिक्षा देना एक #व्यवसाय नहीं था, तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षक वेतन नहीं लेते थे और ना ही छात्रों के पाठ्यक्रम का कोई समय निर्धारित था । बल्कि जिस शिक्षा प्रणाली को करोड़ो रूपये खर्च करने वाले आधुनिक विश्वविद्यालय भी लागू नहीं कर पाए वो प्रणाली तक्षशिला विश्वविद्यालय ने सदियों पहले ही लागू कर दिया था । विश्विद्यालय में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों की रुचि देखकर उनके शिक्षा का विषय आचार्य स्वयं तय करते थे ।

#पैसे लेकर डिग्री बेचने वाले आज के विश्वविद्यालयों के लिए तक्षशिला विश्विद्यालय एक तमाचे की तरह है क्योकिं शिक्षा पूर्ण होने के बाद छात्रों को डिग्री नहीं मिलती थी, अध्ययन के पश्चात उन्हें छः महीने तक शोध और अविष्कार करने का समय दिया जाता था, नई जड़ी-बूटियों की खोज या अविष्कार करने वाले छात्रों को ही डिग्री दी जाती थी ।

500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र था । 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था ।

विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक छात्र मस्तिष्क के भीतर तथा अंतडिय़ों तक का आपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे।

महान विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री #चाणक्य सहित पाणिनी,चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी ।

सदियों तक मानवता को सभ्यता की राह पर ले जाने वाले इस विश्विद्यालय को भूखे-नंगे वहशियों की नजर लग गयी, इसपर कई विदेशी आक्रमण हुए..गिरते-बिखरते पत्थरों से अपनी महानता की कहानियों को सुनाते आखिरकार छठवीं शताब्दी में यह विश्विद्यालय पूरी तरह से बिखकर हमेशा के लिए अमर हो गया ..

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