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दुनियाँ का प्रथम विश्वविद्यालय

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भारत का #स्वर्णिम अतीत.. #तक्षशिला - दुनियाँ का प्रथम विश्वविद्यालय आज भले ही भारत का एक भी विश्विद्यालय दुनियाँ के 100 विश्विद्यालयों में भी जगह नहीं बना पाता लेकिन एक समय ऐसा भी था जब #दुनियाँ की सबसे पहली यूनिवर्सिटी भारत में थी । जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसकी स्थापना श्री राम के भाई #भरत के पुत्र तक्ष ने की थी । यह विश्विद्यालय आज से 2800 वर्ष पूर्व निर्मित किया गया था । दुनियाँ भर के 10,500 से अधिक छात्र यहाँ अध्ययन करते थे । विश्विद्यालय में आज की तरह शिक्षा देना एक #व्यवसाय नहीं था, तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षक वेतन नहीं लेते थे और ना ही छात्रों के पाठ्यक्रम का कोई समय निर्धारित था । बल्कि जिस शिक्षा प्रणाली को करोड़ो रूपये खर्च करने वाले आधुनिक विश्वविद्यालय भी लागू नहीं कर पाए वो प्रणाली तक्षशिला विश्वविद्यालय ने सदियों पहले ही लागू कर दिया था । विश्विद्यालय में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों की रुचि देखकर उनके शिक्षा का विषय आचार्य स्वयं तय करते थे । #पैसे लेकर डिग्री बेचने वाले आज के विश्वविद्यालयों के लिए तक्षशिला विश्विद्यालय एक तमाचे की ...

आधुनिक रहस्य : 1962 में चीन ने भारत पर हमला क्यों किया था?

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1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद आज भी सीमा विवाद कमोबेश उसी स्थिति में है और यह रहस्य भी कि चीन ने भारत पर हमला क्यों किया था राहुल कोटियाल 18 जून 2020 ‘इंडियन डिफेन्स रिव्यू’ में सात मार्च, 2015 को एक लेख छपा. यह लेख मेजर जनरल अफसिर करीम द्वारा लिखा गया था. इसमें उन्होंने भारत को चीन से होने वाले संभावित खतरों की ओर इशारा किया था. उन्होंने लिखा था, ‘अब समय आ गया है जब भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं और नीतियों में सुधार करते हुए चीन को जवाब देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.’  15 जून की रात को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में जो हुआ उसे देखते हुए लगता है कि मेजर करीम ने खतरे को भांप लिया था. उस दिन भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई एक मुठभेड़ में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. चीन के भी 43 सैनिकों के मारे जाने या गंभीर रूप से घायल होने की खबरें आईं. हालात फिलहाल तनावपूर्ण बने हुए हैं. ADVERTISEMENT लेकिन यदि भारत और चीन के राजनीतिक संबंधों को देखें तो स्थिति कुछ अलग नजर आती है. अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिन...

बन्दा बैरागी का बलिदान दिवस 9 जून, 1716

 9 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया मुगल राज से लड़ाई में #धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महावीर को नमन.. एक ऐसी #कहानी जो रोंगटे खड़े कर देती है और जिसको पढ़कर आपका सिर श्रद्धा से उनके चरणों में झुक जाता है.. बन्दा बैरागी धर्म की रक्षा के लिए बोटी बोटी करके  अपना शरीर #कुर्बान करने वाले  अमर बलिदानी बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम-तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था।  युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम #माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे। इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट ...

M&p love status

M&P Love Status https://youtu.be/Gv4TJdGqJyE

भगत सिंह की ज़िंदगी के वे आख़िरी 12 घंटे

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भगत सिंह की ज़िंदगी के वे आख़िरी 12 घंटे लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 की शुरुआत किसी और दिन की तरह ही हुई थी. फ़र्क सिर्फ़ इतना सा था कि सुबह-सुबह ज़ोर की आँधी आई थी. लेकिन जेल के क़ैदियों को थोड़ा अजीब सा लगा जब चार बजे ही वॉर्डेन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं. उन्होंने कारण नहीं बताया. उनके मुंह से सिर्फ़ ये निकला कि आदेश ऊपर से है. अभी क़ैदी सोच ही रहे थे कि माजरा क्या है, जेल का नाई बरकत हर कमरे के सामने से फुसफुसाते हुए गुज़रा कि आज रात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने वाली है. उस क्षण की निश्चिंतता ने उनको झकझोर कर रख दिया. क़ैदियों ने बरकत से मनुहार की कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी चीज़ जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे. सुखदेव, भगत सिंह की यादें 98 साल के स्वतंत्रता सेनानी का संघर्ष इमेज कॉपीरइट WWW.SUPREMECOURTOFINDIA.NIC.IN Image caption सॉन्डर्स मर्डर केस में जज ने इसी कलम से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिए फां...